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Sunday, 12 February 2012

उपकार हैं तेरा मुझ पर ..!!




उपकार हैं तेरा मुझ पर, जो जीने का एक अहसास मुझे दिया,
ये एक अधिकार मुझे दिया, 
सुन्दर हैं ये जहा कितना, ये महसूस मैंने हैं अब किया!!

कितनी हसीं हैं ये तुम्हारी रचना, ये प्रेरणा,
ये उगते हुए सूरज की, चंचल किरणों का पावन धरती पर फेल जाना,
वो पंछियों का चह-चहाते हुए अपने साथियों को मार्ग दिखाना,
और चंद्रमा की शीतलता में तारे संजोय निर्मल आकाश को निहारना!!

वो नदियों का निस्वार्थ भाव से बहना देखा हैं,
 और जल में जीवन महसूस किया हैं,
वो बावड़ी किनारे बैठ ढलते हुए सूरज को सहलाया हैं, 
वो सब याद आता हैं अब, और मन सांसारिक मिथ्याओ को छोड़, 
बच्चा बन जाना चाहता हैं फिर!!

कितना खुशनसीब हूँ मैं, जो तुमने मेरी रूह को,
इस आलोकिक संसार में एक जीवन दिया,
माँ की ममता और पिता का दुलार भी मैंने यही पाया, 
एक स्वर्ग सामान घर में तुमने मुझे बनाया हैं, 
और यही मैंने तुमको पाया हैं, मुझको जाना हैं!!