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Friday, 21 October 2011

कौन हु मैं, क्यों हु मैं !!


आज दिल में ख़याल आता हैं,
तो एक ही सवाल उठता हैं,
कहाँ हु मैं, क्यों हु मैं!!

कहा खो गया हु मैं, इस अकेली दुनिया में,
सागर की घह्राइयों में, असीमित आकाश में,
अपरिमित आकाश का खोया हुआ पंछी लगता हु मैं!!



आज दिल में ख़याल आता हैं,
तो एक ही सवाल उठता हैं,
कौन हु मैं, क्यों हु मैं!!

शितिज पा जाने को भी मन करता हैं, चहचहाने को भी,
आकाश में कटी पतंग बन उड़ जाने को भी करता हैं और सहम जाने को भी,
एक खोया हुआ साया बन जाने को भी मन करता हैं, फिर झिलमिलाने  को भी,


भटकती हुयी गलियों में गूम हो जाने को भी करता हैं, और मिटटी मैं समा जाने को भी,
कभी मनं, बन जाने को भी मन करता हैं!!

लेकिन फिर दिल में ख़याल आता हैं,
और एक ही सवाल उठता हैं,
कौन हु मैं, क्यों हु मैं !!

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