आपस में पर बैर क्यों रखते हैं लोग!
दिल ना इनको पहचान पाता मेरा,
मस्तिषक भी समझ कर ना समझ पाता मेरा,
मानविक कठोरता से सहमजाना मेरा,
सांसारिक सचाइयो में उलज जाना मेरा,
इस पल ये दोस्त हैं तुम्हारे,
दुसरे ही पल तलवार लिए सामने खड़े हैं तुम्हारे!!
कभी कभी क्यों अनजाने से लगते हैं लोग,
आपस में भी तो पर बैर रखते हैं लोग!
अब ना जाने क्यों असुरक्षित महसूस करना मेरा,
और मन के निस्वार्थ सोचने से डरना मेरा,
दिल इन् सांसारिक मिथ्याओ में ना बहल जाए मेरा,
मस्तिष्क इस चकाचोध में ना खो जाए मेरा!!
एक एकांत में खिलखिलाना मेरा,
दूर पहाडियों बीच, नदिया किनारे बस जाना मेरा,
जहा शुद्ध झरने का जल हो, ना किसी की हाय, ना किसी की प्रशंशा में मिलावट हो,
ज़हा मैं, मुझ में महसूस कर सकू, एक ऐसा ठिकाना हैं मेरा,
अब तो ईश्वर की साधना कर, मोक्ष को पा जाना लक्ष्य हैं मेरा!!