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Sunday 12 February 2012

उपकार हैं तेरा मुझ पर ..!!




उपकार हैं तेरा मुझ पर, जो जीने का एक अहसास मुझे दिया,
ये एक अधिकार मुझे दिया, 
सुन्दर हैं ये जहा कितना, ये महसूस मैंने हैं अब किया!!

कितनी हसीं हैं ये तुम्हारी रचना, ये प्रेरणा,
ये उगते हुए सूरज की, चंचल किरणों का पावन धरती पर फेल जाना,
वो पंछियों का चह-चहाते हुए अपने साथियों को मार्ग दिखाना,
और चंद्रमा की शीतलता में तारे संजोय निर्मल आकाश को निहारना!!

वो नदियों का निस्वार्थ भाव से बहना देखा हैं,
 और जल में जीवन महसूस किया हैं,
वो बावड़ी किनारे बैठ ढलते हुए सूरज को सहलाया हैं, 
वो सब याद आता हैं अब, और मन सांसारिक मिथ्याओ को छोड़, 
बच्चा बन जाना चाहता हैं फिर!!

कितना खुशनसीब हूँ मैं, जो तुमने मेरी रूह को,
इस आलोकिक संसार में एक जीवन दिया,
माँ की ममता और पिता का दुलार भी मैंने यही पाया, 
एक स्वर्ग सामान घर में तुमने मुझे बनाया हैं, 
और यही मैंने तुमको पाया हैं, मुझको जाना हैं!!

Sunday 4 December 2011

Part of my Heart.... !!




You are the Tears in my Agonies,
and the Smile in my Happiness,
You are a Part of my Heart,
and a Belief of my Soul!!

You Listen to me, When no one is Interested,
and Believe me, When people Confound me,
You Heed me, When people Ignore my Heart,
and Read my Mind, When i Can't!!
You make me feel Blessed, When i am not,
and feel dejected, When you cry!!


You were my legs, When they were broken,
and my helping hand, When they got fractured!
You were my lottery, When i was bankrupt,
and my theater, When i got bored!!


You are a Pillar of our Fort,
and a Lifeline of our Heart,
You are an Angel which no one can have,
and the 'Single' bond of a 'Triple' bond which my 'Parents' have!!



Sunday 23 October 2011

कभी-कभी क्यों अनजाने से लगते हैं लोग..!!





कभी-कभी क्यों अनजाने से लगते हैं लोग,
आपस में पर बैर क्यों रखते हैं लोग!

दिल ना इनको पहचान पाता मेरा,
मस्तिषक भी समझ कर ना समझ पाता मेरा,
मानविक कठोरता से सहमजाना मेरा,
सांसारिक सचाइयो में उलज जाना मेरा,
इस पल  ये दोस्त हैं तुम्हारे,
दुसरे ही पल तलवार लिए सामने खड़े हैं तुम्हारे!!

कभी कभी क्यों अनजाने से लगते हैं लोग,
आपस में भी तो पर बैर रखते हैं लोग!

अब ना जाने क्यों असुरक्षित महसूस करना मेरा,
और मन के निस्वार्थ सोचने से डरना मेरा,
दिल इन् सांसारिक मिथ्याओ में ना बहल जाए मेरा,
मस्तिष्क इस चकाचोध में ना खो जाए मेरा!!



एक एकांत में खिलखिलाना मेरा,
दूर पहाडियों बीच, नदिया किनारे बस जाना मेरा,
जहा शुद्ध झरने का जल हो, ना किसी की हाय, ना किसी की प्रशंशा में मिलावट हो,
ज़हा मैं, मुझ में महसूस कर सकू, एक ऐसा ठिकाना हैं मेरा,
अब तो ईश्वर की साधना कर, मोक्ष को पा जाना लक्ष्य हैं मेरा!!

आपने ये किस अदा से देखा हमें....!!




आपने ये किस अदा से देखा हमें,
की पतझड़ भी रुसवा हो गया आज!!

कलियाँ भी खिल उठी, सावन  भी लहरा उठा आज,
चाँद भी तो क्या करता, खुद को आप से छुपा लिया आज,
दीपक भी तो अकेला रह गया,  जो तीतर भी आपके हो गए आज!!

आपने ये किस अदा से देखा हमें,
की पतझड़ भी रुसवा हो गया आज!!

वो आपका नाजो से चलना, हमें देख नजरो का झुकना,
वो फिर बातों का पलटना. जुल्फों का सवारना,
हमारे ही दिल को, हम से छीन ले गया आज!!
शम्मा भी कितनी जलती, जो महफिले ही राख हो गयी आज,
आपका ये नूर देख तो, खुदा ही खुद जमी पर उतर आया आज!!

आपने ये किस अदा से देखा हमें,
की पतझड़ भी रुसवा हो गया आज!!

पिता रूप में ईश्वर का प्रभास !!



सूरज की किरणों का अटूट प्रकाश,
चन्द्रमा की  रौशनी में ठंडकता का अहसास, 
सागर की घहराइयो में जीवन का कयास,
आकाश की सीमाओं की माप जाने का विशवास,
दीपक की रौशनी में किसी का प्यार,
एक कोरे कागज़ की तरह, पावन मन में बसने वाले, अस्तित्व की छाव,
संसार में जिन्दा होने का आभास,
तुम ही हो पिता रूप में बसने वाले ईश्वर का प्रभास !!



चट्टान समान अडिगता में सुरक्षा का अनुमान,
नदी समान कोमलता में लहरों का दुलार, 
पंछी बन खेतो से दाना चुग लाने की आस, 
ऋषि मुनि बन सन्मार्ग दिखाने का प्रयास,
तुम ही को तो हैं, सब कर्तव्यों को निभा जाने का अभ्यास,
तुम ही हो पिता रूप में बसने वाले ईश्वर का आशीर्वाद!!

Friday 21 October 2011

कौन हु मैं, क्यों हु मैं !!


आज दिल में ख़याल आता हैं,
तो एक ही सवाल उठता हैं,
कहाँ हु मैं, क्यों हु मैं!!

कहा खो गया हु मैं, इस अकेली दुनिया में,
सागर की घह्राइयों में, असीमित आकाश में,
अपरिमित आकाश का खोया हुआ पंछी लगता हु मैं!!



आज दिल में ख़याल आता हैं,
तो एक ही सवाल उठता हैं,
कौन हु मैं, क्यों हु मैं!!

शितिज पा जाने को भी मन करता हैं, चहचहाने को भी,
आकाश में कटी पतंग बन उड़ जाने को भी करता हैं और सहम जाने को भी,
एक खोया हुआ साया बन जाने को भी मन करता हैं, फिर झिलमिलाने  को भी,


भटकती हुयी गलियों में गूम हो जाने को भी करता हैं, और मिटटी मैं समा जाने को भी,
कभी मनं, बन जाने को भी मन करता हैं!!

लेकिन फिर दिल में ख़याल आता हैं,
और एक ही सवाल उठता हैं,
कौन हु मैं, क्यों हु मैं !!

Wednesday 19 October 2011

क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम....!!



क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम,
क्यों मुझे याद बार -२ आती हो तुम!
क्यों मुझे एक बार नहीं, कई बार सताती हो तुम!
कठिनाइयों से भी तो छुपा ले जाती हो तुम!!

तुम ही तो हो एक निश्छल हवा का झोका,
जो अपने बहाव में, बहला जाती हो तुम!
तुम ही तो हो एक पाक रिश्ता, 
जिसको सदा निभा जाती हो तुम!!




तुम ही तो हो, वो जीवन,
जिसका एक अंश हूँ मैं!
तुम ही तो हो वो दूसरा तालाब,
जिसका किनारा हूँ मैं!
तुम ही तो हो माँ की ममता,
जिसका एक किस्सा हु मैं!!

तुम ही तो हो वो इस्थिर नदी,
जिसके ठहराव  से, बहता हु मैं, तहरता हु मैं!
तुम ही तो हो वो सिमित आकाश,
जिसकी छाव में  सूरज का हिस्सा हु मैं!!

तुम ही तो हो वो इश्वर का रूप,
जिसके आचल में चहकता हु मैं, महकता हु मैं!
तुम ही तो हो वो पोधा,
जिसके साए में निखरता हु मैं!!

तो फिर क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम,
क्यों मुझे याद बार - २ आती हो तुम!!