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Wednesday, 19 October 2011

क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम....!!



क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम,
क्यों मुझे याद बार -२ आती हो तुम!
क्यों मुझे एक बार नहीं, कई बार सताती हो तुम!
कठिनाइयों से भी तो छुपा ले जाती हो तुम!!

तुम ही तो हो एक निश्छल हवा का झोका,
जो अपने बहाव में, बहला जाती हो तुम!
तुम ही तो हो एक पाक रिश्ता, 
जिसको सदा निभा जाती हो तुम!!




तुम ही तो हो, वो जीवन,
जिसका एक अंश हूँ मैं!
तुम ही तो हो वो दूसरा तालाब,
जिसका किनारा हूँ मैं!
तुम ही तो हो माँ की ममता,
जिसका एक किस्सा हु मैं!!

तुम ही तो हो वो इस्थिर नदी,
जिसके ठहराव  से, बहता हु मैं, तहरता हु मैं!
तुम ही तो हो वो सिमित आकाश,
जिसकी छाव में  सूरज का हिस्सा हु मैं!!

तुम ही तो हो वो इश्वर का रूप,
जिसके आचल में चहकता हु मैं, महकता हु मैं!
तुम ही तो हो वो पोधा,
जिसके साए में निखरता हु मैं!!

तो फिर क्यों मुझे अकेला छोड़ जाती हो तुम,
क्यों मुझे याद बार - २ आती हो तुम!!